Thursday, November 14, 2013

Woh 22 bade kadam, kuch saal pehle ke...


वह २२ बड़े कदम, कुछ साल पहले के,
जो २ छोटे पेड़ों के बीच समा जाते थे...
याद आये तो चल दिया उस मैदान की ओर यूं हीं,
जहां बचपन में, स्कूल का बस्ता बिस्तर पर फेंकते ही, हम चले आते थे...

पहुंचने से पहले वहां लेकिन,
साथी जमा करना नहीं समझा अब ज़रूरी...
पेहले जैसे घरों के नीचे खड़े हो कर,
नामों की चीखें लगाने की, मन ने ना दी मंज़ूरी...

अब तो जेबों से, किरमिच की गेंद भी हो गयी थी गोल,
बदले में आ गया था एक बटुआ, ताक़त थी जिसमें की ढेरों गेंद ले खरीद,
पर जिन्हें मिलते ही, जहां में, बजने लगते थे ढोल,
उन मशक्कत से मिले २० रूपों की खुश्बू की ना थी रसीद...

निकलने से पहले घर से, जब अपने कीमती जूते डाल रहा था पैरों में,
तो आ गयी याद वह जूते निकाल कर नंगे पैर भागने की आदत,
जो एक रिश्ता सा बाँध देती थी गैरों में...

इसी तरह एक एक पुरानी याद की तय खोल कर,
अपनी चमचमाती गाड़ी की गद्दी पर बाजू रखता रहा...
आज और बचपन के फलसफों के बीच,
मन-घड़ंत एक तराज़ू रखता रहा...

एक पल ही बीता पहुंचने में उस मैदान के द्वारे,
और एक पल भी ना बीता मुझे उस मंज़र की ताज़गी को निहारे,
कि दौड़ पड़े कदम और लाँघ गये,
उस तीन फुट कि भूरी दीवार के बीच लोहे कि छोटी सी रुकावट को,
आंख हो गयी बंद और चल पड़ा मैं उन २ पेड़ों की तरफ,
भूल कर, हवा में गयी, बदलाव की मिलावट को...

दक्षिण वाले पेड़ की छाओं पड़ी, जब सर पर,
हांफ लिया थोड़ा सा, तने पर रखे एक हाथ...
नज़र को चारों ओर घुमाते  हुए,
दायें कंधे में हो रही हरकत के साथ...

मुस्कान आ गयी चेहरे पर,
और आगे देखते हुए पीछे की ओर चलने लगा मैं...
कुछ फासला बढ़ गया उस पेड़ और मुझ में दोबारा जब, 
झुका ज़रा से, और फिर ज़ोरों से उसकी ओर उड़ने लगा मैं...

कदम पड़े जैसे ही, उसी दक्षिण के पेड़ की आगोश में फिर से,
एक छलांग लगा दी दायां हाथ पुरज़ोर घुमाते हुए,
हवा के गोले को उंगलियों के बीच से,
सामने २२ कदम दूर दूसरे पेड़ की ओर बढ़ाते हुए...

थोड़ा लड़खड़ा के थम गया,
हाथ दोनों घुटनों पर रख, वहीं कुछ पल जम गया...
एक गिनती हो जाये फिर, मन को गया सूझ,
दोनों पेड़ के बीच चल पड़ा, परछाई की आंख-मिचोली को बूझ,
पहुंचा जब दूसरी तरफ,
अचंभा हुआ काफी, बात के ज़ाहिर सा होने के बावजूद,
२२ बड़े कदमों में से पहले के, सिर्फ सोलाह का ही देख कर वजूद...

-पीयूष 'दीवाना' दीवान


2 comments:

  1. " अचंभा हुआ काफी, बात के ज़ाहिर सा होने के बावजूद, २२ बड़े कदमों में से पहले के, सिर्फ सोलाह का ही देख कर वजूद..." :) Memories of childhood, eh?

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